बूंदी का इतिहास

बूंदी का इतिहास:- नमस्कार मित्रों आज हम बात करेंगे बूंदी के इतिहास के बारे में कोटा से जयपुर मार्ग पर 35 कि.मी स्थित बूंदी शहर पर्यटन के अनेक स्थल अपने हृदय में समेटे हैं अरावली पहाडि़यों की गोद में बसा बूंदी राजस्थान का प्राकृतिक सौन्दर्य अद्भुत नजारा है यहाँ अनेक मंदिर होने से इसे ‘छोटी काशी’ के नाम से विभूषित किया गया है यह खूबसूरत शहर बूंदी जिले का मुख्यालय है प्राचीन बूंदी रियासत के समय महलों से जुड़ी मजबूत चार दिवारी परकोटे से घिरी थी इसमें पश्चिम में भैरोपोल, दक्षिण में चौगान गेट, पूर्व में पाटन पोल एवं उत्तर में शुक्ल बावड़ी गेट बने हैं तो आइए हम जानते हैं इस आर्टिकल में विस्तार से.

तारागढ़ का किला

+ तारागढ़ का किला 1426 फीट ऊचें पर्वत पर निर्मित हैं
+ इसके नामकरण के पीछे किले की ऊँचाई के कारण रहा होगी
+ आसमा में तारे जमीन से बहुत ऊँचे होते हैं
+ बूंदी का यह किला भी धरती से तारे की तरह ही दिखाई देता हैं
+ इस कारण इसे तारागढ़ के नाम से जाना जाता हैं
+ मुगल काल में निर्मित होने के उपरान्त भी इस किले में मुगल स्थापत्य कला का प्रभाव नदारद है
+ इसे राजपूती स्थापत्य शैली में बनाया गया
+ किले में प्रवेश के तीन बड़े द्वार है
+ जिनके नाम लक्ष्मी पोल, फूटा दरवाजा और गागुड़ी का फाटक हैं
+ किले में प्रवेश करने पर यहाँ के सुंदर भवनों की भित्तिचित्र एवं स्थापत्य का बेजोड़ नमूने छत्रमहल,अनिरूद्ध महल,रतन महल,बादल महल और फुल महल आदि में दीखते हैं

बूदी का इतिहास

+ अरावली पर्वत सरल से घिरा हुआ है
+ ऐतिहासिक शहर, बूंदी राजस्थान अंचल में स्थित है
+ बूँदी की स्थापना राजा बूंदा मीना ने की थी
+ उसी के नाम पर बूंदी का नाम बूंदी रखा था
+ राजा देव सिंह जी के उपरान्त राजा बरसिंह ने पहाडी पर तारागढ़ नामक दुर्ग का निर्माण करवाया
+ दुर्ग मे महल और कुण्ड-बावडियो को बनवाया
+ 14वी से 17वी शताब्दी के बीच तलहटी पर भव्य महल का निर्माण कराया गया
+ सन् 1620को महल मे प्रवेश के लिए भव्य पोलदरवाज़ा का निर्माण कराया गया
+ पोल को दो हाथी कि प्रतिमुर्तियों से सजाया गया
+ उसे “हाथीपोल” कहा जाता है
+ राजमहल मे अनेक महल साथ ही दिवान- ए -आम और दिवान- ए – खास बनवाये
+ बूँदी अपनी विशिष्ट चित्रकला शैली के लिए विख्यात है

बूंदी की प्रमुख शैलियाँ

+ मुग़लों की अधीनता में आने के बाद यहाँ की चित्रकला में नया मोड़ आया
+ यहाँ की चित्रकला पर उत्तरोत्तर मुग़ल प्रभाव बढ़ने लगे
+ राव रत्नसिंह (1631- 1658 ई.) ने कई चित्रकारों को दरबार में आश्रय दिया
+ सत्रहवीं शताब्दी में बूँदी ने चित्रकला के क्षेत्र में काफ़ी प्रगति की
+ चित्रों में बाग, फ़व्वारे, फूलों की कतारें, तारों भरी रातें आदि का समावेश मुग़ल प्रभाव से होने लगा
+ स्थानीय शैली भी विकसित होती रही
+ चित्रों में पेड़ पौधें, बतख तथा मयूरों का अंकन बूँदी शैली के अनुकूल है
+ सन् 1692 ई. के एक चित्र बसंतरागिनी में बूँदी शैली और भी समृद्ध दिखायी देती है
+ कालांतर में बूँदी शैली समृद्धि की ऊँचाइयों को छूने लगी

रानी जी की बावड़ी

+ बूंदी शहर की कलात्मक बावडि़यों एवं कुंडो है
+ राव राजा अनिरूद्ध सिंह की विधवा रानी नाथावत द्वारा 1699 ई. में निर्मित शहर के मध्य स्थित रानी जी की बावड़ी सिरमौर है
+ बावड़ी में ऊपर से नीचे की ओर जाते तो करीब 150 सीढि़यों के बाद जल कुण्ड आता है
+ स्थापत्य, मूर्ति, शिल्प बनावट सीढि़यां मध्य में बना हाथियों का तोरण द्वार है
+ ऊपर बनी छतरियों तथा दीवारों में बने देवी देवताओं की मूर्तियां बावड़ी की विशेषताएं हैं
+ शहर की दूसरी महत्वपूर्ण बावड़ी गुल्ला जी की कुण्डली आकार की बावड़ी है
+ इसे गुलाब बावडी भी कहा जाता है
+ इसके आगे एल आकार की भिस्तियों की बावड़ी
+ श्याम बावड़ी तथा व्यास बावड़ी भी दर्शनीय हैं
+ शहर में और भी कई बावडि़यां बनी हैं

चौरासी खंबो की छतरी

+ बूंदी के पर्यटक स्थलों में चौरासी खम्बों की छतरी स्मारक दर्शनीय है
+ बूंदी में ही देवपुरा के समीप स्थित कलात्मक छतरी है
+ इस का निर्माण 1684 ईस्वीं में धाबाई देवा की समृति में करवाया गया था
+ देवा राव राजा अनिरुद्ध सह का धार्म भाई था
+ तीन मंजि़ल की छतरी चौरासी ख़बो पर बनी है
+ यह की स्थापत्य कला दर्शनीय है

Conclusion:- मित्रों आज के इस आर्टिकल में हमने बूंदी का इतिहास के बारे में कभी विस्तार से बताया है। तो हमें ऐसा लग रहा है की हमारे द्वारा दी गये जानकारी आप को अच्छी लगी होगी तो इस आर्टिकल के बारे में आपकी कोई भी राय है, तो आप हमें नीचे कमेंट करके जरूर बताएं।

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