गहलौत गोत्र लिस्ट

गहलौत गोत्र लिस्ट – गहलोत वंश की कुलदेवी कौन है, क्षत्रियों की कुलदेवी कौन है, राजपूत का गोत्र क्या है, गोहिल कौन सी जाति होती है, राजपूत गोत्र लिस्ट इन हिंदी, गोहिल वंश की वंशावली, गहलोत कौन जात है, गोयल वंश की कुलदेवी, सिसोदिया राजपूत गोत्र, गहलोत सिसोदिया वंश का इतिहास, गहलोत वंश की इष्ट देवी, वैभव गहलोत का जीवन परिचय,

सन् 556 ई. में जिस ‘गुहिल वंश’ की स्थापना हुई, बाद में वही ‘गहलौत वंश’ बना और इसके बाद यह ‘सिसोदिया राजवंश’ के नाम से जाना गया। जिसमें कई प्रतापी राजा हुए, जिन्होंने इस वंश की मानमर्यादा, इज़्ज़त और सम्मान को न केवल बढ़ाया बल्कि इतिहास के गौरवशाली अध्याय में अपना नाम जोड़ा। महाराणा महेन्द्र तक यह वंश कई उतार-चढाव और स्वर्णिम अध्याय रचते हुए आज भी अपने गौरव और श्रेष्ठ परम्परा के लिये पहचाना जाता है। मेवाड़ अपनी समृद्धि, परम्परा, अद्भुत शौर्य एवं अनूठी कलात्मक अनुदानों के कारण संसार के परिदृश्य में देदीप्यमान है। स्वाधीनता एवं भारतीय संस्कृति की अभिरक्षा के लिए इस वंश ने जो अनुपम त्याग और अपूर्व बलिदान दिये जो सदा स्मरण किये जाते रहेंगे। मेवाड़ की वीर प्रसूता धरती में रावल बप्पा, महाराणा सांगा, महाराणा प्रताप जैसे शूरवीर, यशस्वी, कर्मठ, राष्ट्रभक्त व स्वतंत्रता प्रेमी विभूतियों ने जन्म लेकर न केवल मेवाड़ वरन् संपूर्ण भारत को गौरान्वित किया है। स्वतन्त्रता की अलख जगाने वाले महाराणा प्रताप आज भी जन-जन के हृदय में बसे हुये, सभी स्वाभिमानियों के प्रेरक बने हुए है।

जेम्स टॉड के अनुसार शिकार के बहाने भीलों द्वारा नागादित्य की हत्या कर दी। इस समय इसके पुत्र बप्पा की आयु मात्र तीन वर्ष की थी। बप्पा की भी एक ब्राहमणी ने संरक्षण देकर अरावली के बीहड में शरण लिया। गौरीशंकर ओझा गुहादित्य और बप्पा के बीच की वंशावली प्रस्तुत की, वह सर्वाधिक प्रमाणिक मानी गई है जो निम्न है – गुहिल, भोज, महेन्द्र, नागादित्य, शिलादित्य, अपराजित, महेन्द्र द्वितीय और कालभोज बप्पा आदि। यह एक संयोग ही है कि गुहादित्य और मेवाड राज्य में गहलोत वंश स्थापित करने वाले बप्पा का बचपन अरावली के जंगल में उन्मुक्त, स्वच्छन्द वातावरण में व्यतीत हुआ। बप्पा के एक लिंग पूजा के कारण देवी भवानी का दर्शन उन्हे मिला और बाबा गोरखनाथ का आशिर्वाद भी। बडे होने पर चित्तौड़ के राजा से मिल कर बप्पा ने अपना वंश स्थापित किया और परमार राजा ने उन्हे पूरा स्नेह दिया। इसी समय विदेशी आक्रमणकारियों के आक्रमण को बप्पा ने विफ़ल कर चित्तोड़ से उन्हे गजनी तक खदेड कर अपने प्रथम सैन्य अभिमान में ही सफ़लता प्राप्त की। बप्पा द्वारा धारित रावल उपाधि रावल रणसिंह ( कर्ण सिंह ) 1158 ई. तक निर्वाध रुप से चलती रही। रावण रण सिंह के बाद रावल गहलोत की एक शाखा और हो गई। जो सिसोदिया के जागीर पर आसीन हुई जिसके संस्थापक माहव एवं राहप दो भाई थे। सिसोदा में बसने के कारण ये लोग सिसोदिया गहलौत कहलाये।

सत्ता परिवर्तन, स्थान परिवर्तन, व्यक्तिगत महत्वकांक्षा एवं राजपरिवार में संख्या वृद्धि से ही राजपूत वंशों में अनेक शाखाओं एवं उपशाखाओं ने जन्म लिया है। यह बात गहलौत वंश के साथ भी देखने को मिली है। बप्पा के शासन काल मेवाड़ राज्य के विस्तार के साथ ही उसकी प्रतिष्ठा में भी अत्यधिक वृद्धि हुई है। बप्पा के बाद गहलौत वंश की शाखाओं का निम्न विकास हुआ।

सुर , संत , शूरवीरों की धरती राजस्थान में देवियों की पूजा का विशेष महत्व हैं । कुल की रक्षा एवम् पालन पोषण करने वाली देवी कुलदेवी कहलाती हैं , हर गोत्र की एक अलग कुलदेवी और कुलदेवता होते हैं , इसी तरह जिन कुलों की कुलदेवी श्री बाण , बायण , ब्राह्मणी माताजी हैं , वे गोत्र हम आपको निचे बता रहे हैं ।

सिसोदिया गहलोत राजपूत जिन खांप की कुलदेवी श्री बाण माताजी वे निचे दिए गए हैं , वैसे तो सिसोदिया या गहलोत कहने पर पता चल जाता है कि उनकी कुलदेवी बाण माताजी है लेकिन कोई समझने में कठिनाई ना हो इसीलिए मैं आपको सिसोदिया वंश की 24 शाखा और गहलोत वंश की 25 शाखा से अवगत कराता हूँ जिनकी कुलदेवी श्री बाण माताजी हैं ।

सीसोदियोँ की 24 खांप है 

1. चन्द्रावत
2. लूणावत
3. भाखरोत
4. भंवरोत
5. भूचरोत
6. सलखावत
7. सखरावत
8. चूंडावत
9. मौजावत
10. सारंगदेवोत
11. डूलावत
12. भीमावत
13. भांडावत
14. रुदावत
15. खीँवावत
16. कीतावत
17. सूवावत
18. कुंभावत
19. राणावत
20. शक्तावत
21. कानावत
22. सगरावत मालवा
23. अगरावत
24. पूरावत

रावल बापा जी के 25 कुंवर हुए तथा 25 शाखा, गहलोत शिशोद वंश कहलाये 

1. आहाड़ा
2. कुचेरा
3. हुल
4. केलवा
5.पिपाडा
6. भीमल
7. भटेवरा
8. अजबरिया
9. मंगरोप
10. आसावत
11. बिलिया
12. कडेचा
13. मांगलिया
14. ओजाकरा
15. तिकमायत / तबडकिया
16. बेस
17. धुरनिया
18. मुन्दावत
19. डालिया
20. गोदा
21. दसाइत
22. तलादरा
23. भूसालिया
24. जरफा
25. टवाणा

अन्य गोत्र जिनकी कुलदेवी श्री बाण माताजी है 

अणदा – ब्राह्मणी माताजी – सोनाणा , सारंगवास
आगलुड़ – बाण माताजी – सोनाणा खेतलाजी
अकलेचा – बाण माताजी – सोनाणा खेतलाजी
आडवानी – ब्राह्मणी माताजी
आँजणा – ब्राह्मणी माताजी
उदेश – ब्राह्मणी माताजी
उंटवाड़ – ब्राह्मणी माताजी
ओड़ाणी – ब्राह्मणी माताजी
कलसोणिया – ब्राह्मणी माताजी
करोलीवाल – ब्राह्मणी माताजी
करड़ – ब्राह्मणी माताजी
काबरा – बाण माताजी
कांदलि – ब्राह्मणी माताजी
काला – ब्राह्मणी माताजी
कुण्डल बार – ब्राह्मणी माताजी
केलवा – बाण माताजी
खाटणा – ब्राह्मणी माताजी
गर्ग – ब्राह्मणी माताजी
गदेचा – बाण माताजी
गगराणि – बाण माताजी
गठाणी – बाण माताजी
गहाणि – बाण माताजी
गगलोत भाटी – बाण माताजी
गिलड़ा – बाण माताजी
गोराणा – बाण माताजी
गोदारा – बाण माताजी
गोघात – बाण माताजी
गोसलिया – ब्राह्मणी माताजी ( डीडवाना बामणी )
गोलिया – ब्राह्मणी माताजी
गौतम – बाण माताजी
घोड़ेला – ब्राह्मणी माताजी
चांदेरा – ब्राह्मणी माताजी
चिंचट – ब्राह्मणी माताजी
चित्तौड़ा – बाण माताजी
चेलाणा – ब्राह्मणी माताजी
चोहणिया – ब्राह्मणी माताजी
जाड़ोति – ब्राह्मणी माताजी
जांगला सेवग – ब्राह्मणी माताजी
जागरवाल – ब्राह्मणी माताजी
जोण – ब्राह्मणी माताजी
झुटाणा – बामणी माताजी
टांक – ब्राह्मणी माताजी
डांगी – ब्राह्मणी माताजी
डाबी – ब्राह्मणी माताजी
तरपासा – ब्राह्मणी माताजी
दगड़ावत – ब्राह्मणी माताजी
दधिवाड़िया – ब्राह्मणी माताजी
धनदे – ब्राह्मणी माताजी
नागी – ब्राह्मणी माताजी
नागरिया – ब्राह्मणी माताजी
निवेल – ब्राह्मणी माताजी
परवतीया – ब्राह्मणी माताजी
पलासिया – ब्राह्मणी माताजी
पन्नू – ब्राह्मणी माताजी
पराडिया – ब्राह्मणी माताजी
पालड़ीवाल – ब्राह्मणी माताजी
पाचल – ब्राह्मणी माताजी
पालाच – ब्राह्मणी माताजी
पाटासर – ब्राह्मणी माताजी
पाराशर – ब्राह्मणी माताजी
पेगड़ – ब्राह्मणी माताजी
पोण – ब्राह्मणी माताजी
पोठल्या – बाण माताजी
फोदर – ब्राह्मणी माताजी
बरबड़ – ब्राह्मणी माताजी
बजोच – ब्राह्मणी माताजी
बागाणा – ब्राह्मणी माताजी
बाणिया – ब्राह्मणी माताजी
बामणिया – ब्राह्मणी माताजी
बांकलिया – ब्राह्मणी माताजी
बांभरेचा – ब्राह्मणी माताजी
बारड़ – ब्राह्मणी माताजी
बाबरिया – ब्राह्मणी माताजी
बारड़ा – ब्राह्मणी माताजी
बीजल – ब्राह्मणी माताजी
बोड़ा – ब्राह्मणी माताजी
बोसेता – ब्राह्मणी माताजी
भवरा – बाण माताजी
भायलोत – बाण माताजी
भांड – ब्राह्मणी माताजी
भारद्वाज – ब्राह्मणी माताजी
भिलात – बाण माताजी
भूक – ब्राह्मणी माताजी
भुमलिया – ब्राह्मणी माताजी
भोंडक – बाण माताजी
मंडोवरा – ब्राह्मणी माताजी
मालवी – बाण माताजी
मारोटिया – ब्राह्मणी माताजी
मगड़दिया – बाण माताजी
मारवणिया – ब्राह्मणी माताजी
मांगलिक – बाण माताजी
मिंडा – ब्राह्मणी माताजी
मेरणिया – ब्राह्मणी माताजी
मोचाला – ब्राह्मणी माताजी
राकदी – ब्राह्मणी माताजी
राणे – बाण माताजी
रालड़िया – ब्राह्मणी माताजी
रोहोटिया – ब्राह्मणी माताजी
लवत – ब्राह्मणी माताजी
लायचा – ब्राह्मणी माताजी
लाताड़ – ब्राह्मणी माताजी
लिबड़िया – ब्राह्मणी माताजी
लोलग – ब्राह्मणी माताजी
वड़किया – ब्राह्मणी माताजी
वशिष्ठ – ब्राह्मणी माताजी
विनपाल – ब्राह्मणी माताजी
सखा – ब्राह्मणी माताजी
सवार – बाण माताजी
सकुत – बाण माताजी
सरादरो – ब्राह्मणी माताजी
सेऊआ – ब्राह्मणी माताजी

विशेष सुचना – मित्रों वैसे तो बाण माताजी , ब्राह्मणी माताजी एक ही हैं बस भक्त मातेश्वरी को प्रेम से कभी बाण , बायण तो कभी बामणी , ब्राह्मणी तो कभी बाणेश्वरी माताजी कहते हैं ।
ऊपर दी गयी पोस्ट में आपको हर गौत्र में माँ के दो अलग अलग नामों का प्रयोग किया गया हैं ‘ बाण माताजी और ब्राह्मणी माताजी ‘
दिए गए गोत्रों में जिन गोत्रों के पीछे ‘ बाण माताजी ‘ लिखा है उनकी कुलदेवी निसंदेह: बाण माताजी चित्तौड़ गढ़ में विराजमान है और कुलदेवता श्री सोनाणा खेतलाजी हैं ।
उन गोत्रों की कुलदेवी का पाट स्थान चित्तौड़ गढ़ और कुलदेवता श्री सोनाणा खेतलाजी ही होंगे ।

जिन गोत्रों के पीछे ब्राह्मणी माताजी लिखा हुआ हैं , उनकी कुलदेवी का पाट स्थान वही होगा जो आपके पूर्वज जिस स्थान पर जाकर उपासना या पूजा किया करते थे या जहाँ से आप पहली बार ज्योत लाए हो ।
उदाहरण के तौर पर सिंगानिया गोत्र की कुलदेवी ब्राह्मणी , बाण माताजी ही हैं और यह गोत्र माताजी के पल्लू धाम से एक बार ज्योत लायी है या इनके पूर्वज इनको आराध्य या कुलदेवी मान कर पल्लू में विराजमान रूप की पूजा करते थे तो आपकी कुलदेवी का पाट स्थान पल्लू ही होगा ।
और अगर दी गयी गोत्रों में अगर उन्हें आज तक पता न लगा हो कि उनकी कुलदेवी बाण माताजी , ब्राह्मणी माताजी हैं ।
अगर इस पोस्ट के माध्यम से पहली बार आपको पता चले कि आपकी कुलदेवी ब्राह्मणी माताजी या बाण माताजी है तो आप मातेश्वरी की ज्योत चित्तौड़ से ला सकते हैं श्री बाण माताजी आपकी अपने कुल का ही मानेगी ।

Conclusion:- दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हमने गहलौत गोत्र लिस्ट के बारे में विस्तार से जानकारी दी है। इसलिए हम उम्मीद करते हैं, कि आपको आज का यह आर्टिकल आवश्यक पसंद आया होगा, और आज के इस आर्टिकल से आपको अवश्य कुछ मदद मिली होगी। इस आर्टिकल के बारे में आपकी कोई भी राय है, तो आप हमें नीचे कमेंट करके जरूर बताएं।

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