गहलोत वंश की वंशवली

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गहलौतों की शाखा सिसोदिया है यह पहले लाहौर में रहते थे वहां से बाद में बल्लभीपुर गुजरात में आये वहीं पर बहुत दिनों तक राज्य करते रहे वहां का अन्तिम राजा सलावत या शिलादित्य था।
बल्लभीपुर नगर को बाद में मुसलमान लुटेरों ने तहस नहस कर दिया था उसी के वंशज सिलावट कहलाये राजा शिलादित्य को रानी पुष्पावती पिता चन्द्रावत परमार वंश से जो गर्भ से थी अम्बिकादेवी के मन्दिर में पूजन करने गई थी जब रास्ते में उसने सुना कि राज्य नष्ट हो गया है और शिलादित्य वीरगति को प्राप्त कर चुके हैं तो वह भागकर मलियागिरी की खोह में चली गई उसके वहाँ पुत्र उत्पन्न हुआ रानी ने अपनी एक सखी महंत की लड़की कलावती को इस लड़के को सौंपकर कहा कि मैं तो सती होती हु तुम इस लड़के का पालन-पोषण करना और इसकी शादी किसी राजपूत लड़की से कराना इसके बाद रानी सती हो गई गोह या खोह में जन्म लेने के कारण इस लड़के का नाम गुहा रखा जिससे गहलोत वंश प्रसिद्ध हुआ।

1949 मे जब उदयपुर प्रदेश भारतीय संध मे शामिल हुआ तब यहाँ मोरी गहलोत परिवार का राज था उन्होने 1400 वर्ष तक राज किया था उस समय उदयपुर के प्रमुख जागीरदार प्रदेश छनी, जवास ,ज़ुरा ,मादरी,ओघना, पनारवा ,पारा , पटिया ,सरवन और थाना थी 31 जनवरी 1818 को उदयपुर एक ब्रिटिश संरंक्षित प्रदेश बना अंग्रेज़ अधिकारोयों ने उदयपुर के शासको को 19 तोपों की सलामी दी उदयपुर के अंतिम शासक ने 7 अप्रैल1949 को परिग्रहण पर हस्ताक्षर किये |

मेवाड़ का सिसोदिया वंश 

अलाउदीन खिलजी ने गहलोत वंश के अंतिम शासक को मारकर चित्तोड़ पर कब्जा लिया सिसोदिया वंश के राणा लक्षा अपने दस पुत्रों को साथ लेकर चित्तोड़ की रक्षा करने लगे राणा लक्षा के दो पुत्र अरी सिंह और अजय सिंह थे अरी सिंह के पुत्र हम्मीर सिंह प्रथम को चाचा अजय सिंह केलवाडा की सुरक्षा के लिए ले गए मेवाड़ को हराने के बाद अलाउदीन खिलजी ने राणा लक्षा ओर उसके पुत्र अरी सिंह प्रथम को मार डाला
अब सभी लोगों ने अजय सिंह के नेतृत्व में एकत्रित होना शुरू कर सन 1320 मे अजय सिंह की मृत्यु हो गई इसके बाद सरदारों ने अब हम्मीर सिंह प्रथम को सिसोदिया वंश का वारिस घोषित कर दिया इसके बाद मेवाड़ के उत्तराधिकारी बन गए इसके बाद जालोर के मालदेव की पुत्री से विवाह किया जो दिल्ली के लिए चित्तोड़ पर शाषित थे हम्मीर सिंह ने अपने ससुर को हराकर अपनी मातृभूमि पर फिर से राज किया |
हिम्म्द सिंह मेवाड़ के महाराणा की उपाधि लेने वाले प्रथम शासक थे महाराणा खेता ने अजमेर और मांडलगढ़ को मेवा मे मिला दिया महाराणा लाखा ने दिल्ली द्वारा छिने गए प्रदेशो को भी फिर से मेवाड़ में मिला दिया और रण भूमि मे मारे गए |

भैरव जी को शिव का अवतार माना जाता हैं भैरव जी का रंग श्याम हैं उनकी चार भुजाएं हैं जिनमें वे त्रिशूल, खड्ग, खप्पर तथा नरमुंड धारण किए हुए हैं उनका वाहन श्वान हैं भैरव जी कुल रक्षक देवता के रूप में पूजे जाते हैं मण्डोर, सोनाणा और सारंगवास बावजी के मुख्य मंदिर हैं काशी से सर्वप्रथम भेरू जी मण्डोर पधारे |

24 शाखा गहलोत शिशोद वंश 

1.) श्री मान रावल बापा जी का खुमाण राव जी का – आहाड़ा
2.) श्री मान रावल कचरूजी – कुचेरा
3.) श्री मान रावल हासोजी – हुल
4.) श्री मान रावल कलोजी – केलवा
5.) श्री मान रावल पीपाजी – पिपाडा
6.) श्री मान रावल रूपजी – भीमल
7.) श्री मान रावल भटोजी – भटेवरा
8.) श्री मान रावल अजोजी – अजबरिया
9.) श्री मान रावल मगरूपजी – मंगरोप
10.) श्री मान रावल आसोजी – आसावत
11.) श्री मान रावल बालाजी – बिलिया
12.) श्री मान रावल किकाजी – कडेचा
13.) श्री मान रावल मंगलराजजी – मांगलिया
14.) श्री मान रावल ओजोजी – ओजाकरा
15.) श्री मान रावल तिकमानि जी – तिकमायत / तबडकिया
16.) श्री मान रावल बगसोजी – बेस
16.) श्री मान रावल धुरजी – धुरनिया
17.) श्री मान रावल मुन्द्पालजी – मुन्दावत
18.) श्री मान रावल डुंगजी – डालिया
19.) श्री मान रावल गोदाजी – गोदा
20.) श्री मान रावल द्सोजी – दसाइत
21.) श्री मान रावल तलाजी – तलादरा
22.) श्री मान रावल भीमजी – भूसालिया
23.) श्री मान रावल जुजाजी – जरफा

Conclusion:- दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हमने गहलोत वंश की वंशवली के बारे में विस्तार से जानकारी दी है। इसलिए हम उम्मीद करते हैं, कि आपको आज का यह आर्टिकल आवश्यक पसंद आया होगा, और आज के इस आर्टिकल से आपको अवश्य कुछ मदद मिली होगी। इस आर्टिकल के बारे में आपकी कोई भी राय है, तो आप हमें नीचे कमेंट करके जरूर बताएं।

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