गुहिल वंश की वंशवली – गुहिल वंश की उत्पत्ति , गोहिल वंश की वंशावली , गुहिल वंश का पहला शासक कौन था , सिसोदिया वंश की 24 शाखाएं , गोहिल वंश का इतिहास , गुहिल वंश की आराध्य देवी , सिसोदिया वंश के राजाओं के नाम , महाराणा प्रताप की वंशावली , गुहिल वंश की वंशवली ,
सन् 556 ई. में जिस ‘गुहिल वंश’ की स्थापना हुई बाद में वही ‘गहलौत वंश’ बना और इसके बाद यह ‘सिसोदिया राजवंश’ के नाम से जाना गया जिसमें कई प्रतापी राजा हुए जिन्होंने इस वंश की मानमर्यादा इज़्ज़त और सम्मान को न केवल बढ़ाया बल्कि इतिहास के गौरवशाली अध्याय में अपना नाम जोड़ा महाराणा महेन्द्र तक यह वंश कई उतार-चढाव और स्वर्णिम अध्याय रचते हुए आज भी अपने गौरव और श्रेष्ठ परम्परा के लिये पहचाना जाता है मेवाड़ अपनी समृद्धि, परम्परा अद्भुत शौर्य एवं अनूठी कलात्मक अनुदानों के कारण संसार के परिदृश्य में देदीप्यमान है स्वाधीनता एवं भारतीय संस्कृति की अभिरक्षा के लिए इस वंश ने जो अनुपम त्याग और अपूर्व बलिदान दिये जो सदा स्मरण किये जाते रहेंगे मेवाड़ की वीर प्रसूता धरती में रावल बप्पा महाराणा सांगा महाराणा प्रताप जैसे शूरवीर यशस्वी कर्मठ राष्ट्रभक्त व स्वतंत्रता प्रेमी विभूतियों ने जन्म लेकर न केवल मेवाड़ वरन् संपूर्ण भारत को गौरान्वित किया है स्वतन्त्रता की अलख जगाने वाले महाराणा प्रताप आज भी जन-जन के हृदय में बसे हुये सभी स्वाभिमानियों के प्रेरक बने हुए है।
मेवाड़ में गुहिल वंश की स्थापना 566 ई. में गुहिलादित्य ने की थी गुहिलादित्य ने अपनी राजधानी नागदा (उदयपुर) को बनाया था गुहिलादित्य के सिक्के सांभर संग्रहालय में स्थित हैं गुहिलादित्य का वंशज महेन्द्र द्वितीय का पुत्र कालभोज मालभोज था कालभोज हारित ऋषि की गायें चराता था हारित ऋषि ने कालभोज को आशिर्वाद व बप्पारावल की उपाधि दी और कहा जा रे जा बप्पा रावल मानमोरी को हरा डाल हारित ऋषि एकलिंग जी की उपासना करते थे एकलिंग को गुहिलवंश के शासक अपना कुलदेवता मानते हैं मुहणौत नैणसी ने गुहिलों की 24 शाखाओं का वर्णन किया हैं गुहिल वंश के नागादित्य की हत्या कर भीलों ने ईडर का क्षेत्र छीन लिया था।
गोहिल भगवान राम के वंशज हैं सूर्यवंश के आदि पुरुष की 65 वीं पीढ़ी में भगवान राम हुए 195 वीं पीढ़ी में वृहदंतक हुये 125 वीं पीढ़ी में सुमित्र हुये 155 वीं पीढ़ी अर्थात सुमित्र की 30 वीं पीढ़ी में गुहिल हुए जो गोहिल(गुहिल) गहलोत वंश की संस्थापक पुरुष कहलाये गुहिल से कुछ पीढ़ी पहले कनकसेन हुए जिन्होंने सौराष्ट्र में सूर्यवंश के राज्य की स्थापना की गुहिल का समय 566 ई. था गुह्यदत्त गुहिल) के वंश में बप्पा रावल कालभोज हुए बप्पा रावल ने सन 734 ई० में मान मोरी मौर्य से चित्तौड की सत्ता छीन कर मेवाड में गुहिल गहलौत वंश के शासक का सूत्रधार बनने का गौरव प्राप्त किया इनका काल सन 734 ई० से 753 ई० तक था।
गुहिल / गोहिल वंश के स्थापक
> महाराजा गुहादित्य (गुहिल)
> भोज (ई.स.586 – 606)
> महेन्द्र – (प्रथम) (ई.स.606 – 626)
> नागादित्य – नाग (ई.स.626 – 646)
> शिलादित्य (ई.स.646 – 661)
> अपराजित (ई.स.661 – 688)
> महेन्द्र – (द्वीतीय) (ई.स.688 – 734)
> कालभोज (बप्पा रावल) (ई.स.734 – 753)
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