गुर्जर-प्रतिहार वंश की वंशवली

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अग्निकुल के राजपूतों में सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रतिहारवंश था जो गुर्जरों की शाखा से संबंधित होने के कारण इतिहास में गुर्जर-प्रतिहार कहा जाता है इस वंश की प्राचीनता 5वी.शता. तक जाती है पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल लेख में गुर्जर जाति का उल्लेख सर्वप्रथम हुआ है बाण के हर्षचरित में भी गुर्जरों का उल्लेख किया गया है चीनी यात्री ह्वेनसांग ने कु-चे-लो (गुर्जर) देश का उल्लेख किया है जिसकी राजधानी पि-मो-ली अर्थात् भीनमाल में थी।

गुर्जर-प्रतिहार वंश के इतिहास 

अग्निकुल के राजपूतों में सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रतिहारवंश था जो गुर्जरों की शाखा से सम्बन्धित होने के कारण इतिहास में गुर्जर-प्रतिहार कहा जाता है इस वंश की प्राचीनता पाँचवीं शती तक जाती है पुलकेशिन् द्वितीय के ऐहोल लेख मेंगुर्जर जाति का उल्लेख सर्वप्रथम हुआ है

गुर्जर-प्रतिहार वंश की उत्पत्ति 

विभिन्न राजपूत वंशों की उत्पत्ति के समान गुर्जर-प्रतिहारवंश की उत्पत्ति भी विवादग्रस्त है राजपूतों की उत्पत्ति के विदेशी मत के समर्थन में विद्वानों ने उसे ‘खजर’ नामक जाति की संतान कहा है जो हूणों के साथ भारत में आई थी इस मत का समर्थन सबसे पहले कैम्पबेल तथा जैक्सन ने किया और बाद में भण्डारकर तथा त्रिपाठी आदि भारतीय विद्वानों ने भी इसे पुष्ट कर दिया ।

गुर्जर-प्रतिहार वंश के शासक 

> नागभट्ट प्रथम (730 – 756 ई.)
> वत्सराज (783 – 795 ई.)
> नागभट्ट द्वितीय (795 – 833 ई.)
> मिहिरभोज (भोज प्रथम) (836 – 889 ई.)
> महेन्द्र पाल (890 – 910 ई.)
> महिपाल (914 – 944 ई.)
> भोज द्वितीय
> विनायकपाल
> महेन्द्रपाल द्वितीय
> देवपाल (940 – 955 ई.)
> महिपाल द्वितीय
> विजयपाल
> राज्यपाल
> यशपाल

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