झाला वंश की वंशावली

झाला वंश की वंशावली – झाला वंश की कुलदेवी कौन है, झाला राजवंश, झाला क्या है, झाला मानसिंह, झाला बीदा कौन था, झाला गोत्र, मकवाना वंशावली, राठौड़ों की शाखाएं,

झाला का एक कबीला है राजपूतों वे में पाए जाते हैं गुजरात भारत का राज्य रियासत का ध्रांगधरा एक 13 बंदूक था सलामी की अवस्था 1920 के दशक में जब यह झाला वंश के सदस्यों द्वारा शासित था उस समय झाला ने 11-बंदूक की सलामी अवस्था में शासन किया वांकानेर और 9-बंदूक सलामी राज्यों में लिम्बडी तथा वधावन, साथ ही गैर-सलामी राज्यों में लखतर, सायला तथा चुडा |

झाला वंश का इतिहास 

सन 1920 के दौर में जब बंदूकों की सलामी वाले राजवाड़े होते थे तब झाला वंश के राजपूत तेरह बंदूकों की सलामी वाले धांगध्रा पर शासन करते थे वो ग्यारह बंदूकों की सलामी वाले वांकानेर और नौ बंदूकों की सलामी वाले लिम्बडी और वढवाण पर भी शासन करते थे कुछ बिना सलामी वाले रजवाड़े भी उनके शासन में थे अगर आप राजस्थान के नहीं हैं तो हो सकता है आपने झाला राजपूतों के बारे में ना भी सुना हो इसकी एक बड़ी वजह इतिहास को लिखने का अंग्रेजों और उनके टुकड़ाखोरों का तरीका भी रहा।
राज्य और इलाके के सही नाम के बदले, वो नाम बिगाडऩे में ज्यादा रूचि रखते थे वो सिर्फ राजधानी के नाम से इलाकों को पहचानते थे और यही परंपरा उन्होंने शिक्षा व्यवस्था में भी डाली इसे समझना है तो जरा सोच के बताइये राम कहाँ के राजा थे अयोध्या कहा क्या वो तो राम की राजधानी थी ना, राज्य-देश कौन सा था जहाँ के राजा थे वो पूछा है राज्य के बदले राजधानी क्या होता है वो समझ लिया तो राम के उच्चारण को रामा, कृष्ण का कृष्णा, गणेश का गनेशा, या ग्रंथों को महाभारता-रामायणा करने में भी देख लीजियेगा।
देश को समेट कर सिर्फ राजधानी कर देने से एक बड़े से इलाके का इतिहास भूल कर सिर्फ छोटी सी राजधानी की बात होती रह जाती है इतिहास के कई हिस्से लोग भूलने लगते हैं समय के साथ आक्रमणकारी स्थानीय सभ्यता को हीन साबित करने में कामयाब भी हो जाते हैं जैसे राजस्थान के इलाकों के लोग बावड़ी और जल संरक्षण के अन्य तरीके भूलने लगे प्रसिद्ध रानी की वाव भी कई साल बाद खुदाई में मिली वैसे ही झाला राजपूत भी लिखित इतिहास से गायब तो हुए लेकिन वो कहानियों में बाकी रह गए युद्ध में किसी राजा का मुकुट उसके किसी सरदार ने पहन कर अपने राजा को बचाया और शत्रुओं को धोखा दिया हो ऐसी कहानी सुनी है
ये जो कहानी ज्यादातर लोगों ने सुनी होती है वो झाला मन्ना की कहानी है झाला मानसिंह या झाला मन्ना बड़ी सादड़ी के राजपूत परिवार से थे कभी महाराणा रायमल ने ये जागीर झाला मन्ना के पूर्वजों श्री अज्जा और श्री सज्जा को दी थी हल्दीघाटी की लड़ाई से ठीक पहले गोगुन्दा में महाराणा प्रताप की युद्ध परिषद में (1576) में झाला मन्ना शामिल हुए थे युद्ध के दौरान जब महाराणा प्रताप ने सलीम (बाद का जहाँगीर) पर आक्रमण किया तो झाला मन्ना उनके करीब ही थे।
चेतक के काफी घायल हो जाने पर जब मुग़ल फ़ौज के कई सिपाहियों ने महाराणा प्रताप के चारों ओर घेरा डालना शुरू किया तो झाला मन्ना आगे बढ़े उन्होंने महाराणा प्रताप के सर से राज चिन्ह और मुकुट लेकर अपने सर पर धारण कर लिया और महाराणा को युद्ध क्षेत्र से निकल जाने कहा युक्ति काम कर गई और शत्रुओं ने झाला मन्ना को महाराणा प्रताप समझकर उनपर हमला कर दिया भीषण युद्ध करते झाला मन्ना वीरगति को प्राप्त हुए नहीं, झाला मन्ना कोई अस्सी किलो का भाला नहीं चलाते थे उनकी तलवार भी पच्चीस किलो की नहीं थी वीरगति को प्राप्त होने से पहले झाला मन्ना मुग़ल सेना को पूर्व की ओर पीछे धकेल चुके थे उनकी समझदारी की वजह से महाराणा प्रताप बाद में मेवाड़ को स्वतंत्र करवा पाए झाला मन्ना स्वामिभक्ति और बलिदान के साथ साथ मुश्किल परिस्थितियों में भी समझदारी ना भूलने के लिए याद किये जाते हैं उनकी याद में पांच रुपये के पांच लाख डाक टिकट हाल में ही जारी किये गए हैं हैदराबाद में मुद्रित इन डाक टिकटों में झाला मन्ना आने वाली पीढिय़ों की प्रेरणा बने रहेंगे।

श्याम नारायण पांडेय 

तब तक झाला ने देख लिया राणा प्रताप हैं संकट में बोला ना बाल बांका होगा, जब तक है प्राण बचे घट में अपनी तलवार दुधारी ले, भूखे नाहर सा टूट पड़ा कल-कल मचा अचानक दल, अश्विन घन सा फूट पड़ा रख लिया छत्र अपने सर पर, राणा प्रताप मस्तक से ले ले स्वर्ण पताका जूझ पड़ा, रण भीम कला अंतक से ले झाला को राणा जान मुगल, फिर टूट पड़े थे झाला पर मिट गया वीर जैसे मिटता, परवाना दीपक ज्वाला पर।

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